कभी-कभी ‘ऑफलाइन’ होना भी ज़रूरी होता है – लेखिका, सोनम विश्वकर्मा✍️


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रिपोर्ट – प्रदेश संवाददाता पत्रकार अतुल कुमार तिवारी

 

आजकल हम दिनभर मोबाइल स्क्रीन में आंखें गड़ाए रहते हैं। सुबह की शुरुआत Instagram से होती है और रात का अंत YouTube पर होता है। क्या आपने कभी सोचा है कि इस ‘डिजिटल लाइफ’ में हमारी रियल लाइफ कहीं पीछे तो नहीं छूट रही?

 

मैंने हाल ही में एक दिन का डिजिटल डिटॉक्स किया—कोई सोशल मीडिया नहीं, न WhatsApp, न Reels, न कोई नोटिफिकेशन। यकीन मानिए, शुरुआत में बेचैनी हुई, पर जैसे-जैसे समय बीता, मैं खुद से जुड़ने लगी। परिवार के साथ बैठना, किताब पढ़ना, सुकून की नींद लेना—ये सब फिर से जीने जैसा था।

 

हम सबको कभी-कभी रुकना चाहिए, सांस लेना चाहिए, और स्क्रीन से हटकर आसमान देखना चाहिए।

क्योंकि असली कनेक्शन मोबाइल में नहीं, दिलों में होते हैं।

 

अगर आप भी थक चुके हैं इस अनवरत डिजिटल भागदौड़ से, तो एक दिन का डिजिटल डिटॉक्स जरूर आज़माएं।

कभी-कभी ‘ऑफलाइन’ होना, असली ‘रीचार्ज’ होता है। –

लेखिका, सोनम विश्वकर्मा ✍️

जौनपुर।

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